पर्यावरण नियमों में ढील, हिमालय के लिए खतरे की घंटी

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10 हिमालयी राज्यों के 50 संगठनों और पर्यावरणविदों ने भेजा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को ज्ञापन

शिमला। हिमालयी क्षेत्र के राज्यों के 50 से अधिक पर्यावरण समूहों, संगठनों, प्रख्यात विचारकों, बुद्धजीवियों और कार्यकर्ताओं ने हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पारिस्थितिकीय संकट और पर्यावरणीय दुर्गति को रोकने और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा प्रस्तावित पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना 2020 को वापस लेने की मांग की है. मंत्रालय द्वारा यह विवादास्पद कदम कंपनियों और विकास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया को ढीला बनाने की ओर एक और प्रयास है जिसका पुरजोर विरोध हुआ है.

आज हिमालय में जलवायु परिवर्तन संबंधित आपदाओं, वनों के दोहन, विलुप्त होती जैव विविधता, भुसख्लन, नदियों के सूखने, ख़तम होते भूजल स्रोतों, ग्लेशियरों के पिघलने, पहाड़ों के खोखले किये जाने व ठोस और संकटमय कचरे से संबंधित प्रदूषण जैसी समस्याएं आम हैं और यहाँ कि पर्यावरणीय स्थिति अत्यंत सवेंदनशील है।

पहले से ही हिमालय क्षेत्र पारिस्थितकीय और भौगोलिक रूप से अत्यंत नाजुक होने के लिए जाना जाता है, जहां प्रकृति से छोटी सी छेड़छाड़ भी व्यापक असर डालती है जिसका लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन पर तीव्र प्रभाव पड़ता है।

पर्यावरणीय नियम कानून के क्रियान्वयन में ढिलाई और उदासीनता के चलते आज यह पारिस्थितिक संकट और भी विकट हो गया है । पिछले कुछ सालों में पर्यावरणीय मानदंडों और सामाजिक जवाबदेही के प्रावधानों के बढ़ते उल्लंघन, विस्तृत वैज्ञानिक योजना और प्रभाव मूल्यांकन अध्ययनों के आभाव और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में कम होते लोकतांत्रिक जन-भागीदारी ने इस स्थिति को और गंभीर कर दिया है।

इस सन्दर्भ में केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना के तहत कंपनियों और परियोजना डेवलपर्स के लिए पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया में और अधिक छूट का नया प्रस्ताव और भी घातक है। गौरतलब है कि 1986 पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत बनायी गई ईआईए कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत किसी भी प्रस्तावित परियोजना या विकास कार्य के संभावित पर्यावरण व सामाजिक- आर्थिक प्रभाव का मूल्यांकन करना अनिवार्य है। इस कानून के तहत परियोजना को मंज़ूरी लेने की निर्णय-प्रक्रिया में प्रभावित समुदायों के साथ जन परामर्श व तकनीकी और वैज्ञानिक विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा भी शामिल है ताकि परियोजना की कीमत उससे होने वाले लाभ से ज्यादा न हो।

हालाँकि, पिछले दो दशकों में, व्यापार के लिए इन नियमों को लगातार ढीला कर इस अधिसूचना में संशोधन किया गया। अब यह नया मसौदा, ईआईए प्रक्रिया को एक औपचारिकता मात्र बनाकर कमज़ोर छोड़ देने की दिशा में ही एक और कदम है। जबकि हिमालयी पारिस्थितिक की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आवश्यक है कि सरकार और कड़े व मजबूत पर्यावरणीय कानून बनाए न कि इनको खत्म करे।

वहीं जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के तहत खुद भारत सरकार ने, लगभग 10 साल पहले, हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र को टिकाऊ बनाए रखने के लिए एक अलग राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की थी. यह स्पष्ट दर्शाता है कि इस क्षेत्र की जैव विविधता, भूविज्ञान और सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को संरक्षित करना कितना आवश्यक व महत्वपूर्ण है। पश्चिमी से पूर्वी हिमालय तक हिमालयी क्षेत्र भारत के 12 राज्यों में विस्तार है जिसमें निवासित लगभग 8 करोड़ की आबादी पूरी तरह से किसानी और वन आधारित आजीविकाओं पर निर्भर हैं।

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