कीवी के पंखों से कांगड़ा की बागबानी को मिलेगी नई उड़ान

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पहली मर्तबा रैत, धर्मशाला के उद्यानों में तैयार हुए कीवी फल

धर्मशाला, 07 जून, 2020। हिमाचल के सबसे बड़े जिला कांगड़ा की आवोहवा और मिट्टी में कीवी उत्पादन की बेहतर क्षमता है, प्रयोगिक तौर पर कांगड़ा जिला के धर्मशाला तथा रैत ब्लाक में दो वर्ष पहले कीवी उत्पादन की संभावनाएं तराशने के लिए सरकार तथा बागबानी विभाग द्वारा किसानों को प्रेरित किया गया।

इन दो विकास खंडों में अब तक 15 उद्यान स्थापित किए गए हैं तथा जून माह, 2020 में दो वर्ष पहले स्थापित उद्यानों में कीवी के फलों से लकदक पेड़ सफलता की कहानी बयां कर रहे हैं।

इस सफलता के बाद बागबानी विशेषज्ञों की मानें तो शिमला, कुल्लू किन्नौर के सेब की तरह ही कांगड़ा जिला के लिए कीवी बेहतर आमदनी का साधन बन सकती है और कांगड़ा जिला का नाम कीवी उत्पादन के मानचित्र में भी अंकित हो सकता है।

लॉकडाउन के बाद बेरोजगार हुए लोगों के लिए गुणकारी तत्वों से भरपूर और महंगे फलों में गिने जाने वाले कीवी का उत्पादन स्वरोजगार का बेहतर विकल्प है।

मध्य पर्वतीय इलाकों 900 से लेकर 1800 मीटर तक की उंचाई कीवी उत्पादन के लिए बेहतर माने गए हैं। कांगड़ा जिला का अधिकांश भू-भाग भी इसी मध्य पर्वतीय श्रृंखला में शामिल है इन्हीं संभावनाओं को देखते हुए कांगड़ा जिला में पहली मर्तबा दो वर्ष पहले मुख्यमंत्री कीवी प्रोत्साहन योजना के तहत किसानों को पारंपरिक खेती से हटकर कीवी उत्पादन के लिए प्रेरित किया गया है तथा अनुदान पर कीवी की पौध तथा बगीचे को तैयार करने के लिए अनुदान पर लोहे के एंगल भी उपलब्ध करवाए गए हैं, प्रति कनाल पर कीवी उद्यान स्थापित करने के लिए कुल राशि दो लाख 77 हजार अनुदान के रूप में प्रदान की गई है।

बागबानी विशेषज्ञों संजय गुप्ता, हितेंद्र पटियाल तथा लेखराज की देखरेख में ही इन उद्यानों में कीवी की फसल तैयार की गई है।

कीवी की खास बात यह है कि दो वर्षों में फल लगना आरंभ हो जाते हैं और यह कीवी का पेड़ 50 वर्षों से अधिक समय पर फल देता है। कीवी में पौषिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जिसमें विटामिन के साथ साथ कीवी को अच्छा ऑक्सीडेंट भी माना जाता है जिसके चलते बाजार में भी अच्छे दाम मिल जाते हैं।

हिमाचल की दृष्टि से कीवी फ्रूट को बंदर इत्यादि भी नष्ट नहीं करते हैं, तूफान इत्यादि आने पर भी फल टहनी से नीचे नहीं गिरते हैं। फल को टहनी से तोड़ने के दस दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है जिसके चलते फल को मार्केट तक पहुंचाने में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं हो होती है।

नौरी के बागबान रूप चंद तथा कर्नल तपवाल का कहना है कि बागबानी विभाग की देखरेख में दो वर्ष पहले कीवी का उद्यान तैयार किया है और अब कीवी का फल पूरी तरह से तैयार हो गया है।

उनका कहना है कि कीवी फल को बंदरों द्वारा भी नष्ट नहीं किया गया और तूफान इत्यादि की स्थिति में भी कीवी फल टहनी से टूटकर नीचे नहीं गिरा है।

उन्होंने कहा कि अब कीवी उद्यान का विस्तार करने पर भी विचार कर रहे हैं तथा युवाओं को भी कीवी उत्पादन के लिए प्रेरित करेंगे ताकि युवाओं को भी बेहतर स्वरोजगार मिल सके।

विषयवाद विशेषज्ञ डा संजय गुप्ता ने बताया कि कांगड़ा जिला के धर्मशाला तथा रैत ब्लाक में बागबानी विशेषज्ञों की देखरेख में कीवी के 15 उद्यान तैयार किए गए हैं, इस के लिए किसानों को पचास फीसदी अनुदान पर लोहे के एंगल तथा पौध भी उपलब्ध करवाई गई है।

इसमें गांव विक्टू में शक्ति चंद, गांव बोह में रिहाडू राम, गांव खरीडी में सुबोध बुराथोगी, राजोल में कुलभूषण राजौरिया, प्रतिमनगर में कर्नल तपवाल, रक्कड़ में धनपत राय, सौकणी दा कोट में देवराज, अंद्राड् में जितेंद्र, झियोल में हुकम चंद, प्रीतमनगर में दुश्यंत कायश्था, गांव बट्टू में पीसी राणा, डिब्बर में सुभाष, नेरटी में हंसराज, नौरी झिकली के रूप चंद ने कीवी का उद्यान तैयार किया है।

संजय गुप्ता ने कहा कि जो उद्यान दो वर्ष पहले स्थापित किए गए हैं उनमें कीवी की अच्छी पैदावार हुई है तथा कांगड़ा जिला के बागबानों को आमदनी अर्जित करने का कीवी के रूप में नया विकल्प भी मिला है।

उन्होंने कहा कि सरकार तथा बागबानी विभाग की ओर से कीवी उत्पादन के लिए किसानों तथा युवाओं को प्रेरित किया जा रहा है ताकि घर में रहकर ही स्वरोजगार के बेहतर साधन उपलब्ध हो सकें।

उन्होंने कहा कि कांगड़ा जिला का अधिकांश भू-भाग की जलवायु कीवी उत्पादन के लिए बेहतर है। डा संजय गुप्ता ने कहा कि अगर जिला में कोई भी किसान कीवी का उद्यान तैयार करने का इच्छुक हो तो वह संबंधित बागबानी विकास अधिकारी से संपर्क कर सकता है तथा इसमें किसानों को विभाग की तरफ से हरसंभव मदद मुहैया करवाई जाएगी।

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